दादामुनी - अशोक कुमार फिल्मी सफर - Dwarpal Sikar

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26 जून 2020

दादामुनी - अशोक कुमार फिल्मी सफर

दादामुनी - अशोक कुमार फिल्मी सफर


''कोई हारकर जीत लेता है और कोई जीतकर हार जाता है''

‘‘समझदार लोग कभी दिल से मोहब्बत नहीं करते’’


सन् 1950 के आसपास अपनी स्वयं की कंपनी शुरू कर जूपिटर थि,टर को खरीदा। इसके बाद अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर के साथ उन्होंने अपनी पहली फिल्म समाज का निर्मा.ा किया। यह फिल्म बॉक्स आफिस पर असफल रही। इसके बाद उन्होनें परि.ाीता बनाई, ‘परि.ाीता’ के निर्मा.ा के दौरान फिल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन हो Ûई थी और उन्होंने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया। लÛातार तीन वर्ष तक फिल्म निर्मा.ा में ?ााटा होने के कार.ा उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी। अभिने=ी नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने ,क बार फिर से बिमल रॉय के साथ 1963 में प्रदर्शित फिल्म बंदिनी में काम किया। यह फिल्म हिन्दी फिल्म के इतिहास में क्लासिक फिल्मों में से ,क है। 1967 में प्रदर्शित फिल्म ‘ज्वैलथीफ’ में अशोक कुमार के अभिनय का नया रूप दर्शको को देखने को मिला। इस फिल्म में वह अपने सिने कैरियर मे पहली बार खलनायक की भूमिका में दिखाई दि,। इस फिल्म के जरि, भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। अभिनय में आई ,करुपता से बचने और स्वंय को चरि= अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लि, अशोक कुमार ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इनमें 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘आर्शीवाद’ खास तौर पर उल्लेखनीय है। फिल्म में बेमिसाल अभिनय के लि, उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया Ûया। इस फिल्म में उनका Ûाया Ûाना रेल Ûाड़ी-रेल Ûाड़ी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।

अशोक कुमार ने बाद के जीवन में चरि= अभिनेता की भूमिका,ँ निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार Ûंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। विक्टोरिया नंबर 203 फिल्म हो या शौकीन, अशोक कुमार ने हर किरदार में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरि= अभिनेता का किरदार निभाना शुरू कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजÛी क़ायम रही। ,ेसी फिल्मों में क़ानून, चलती का नाम Ûाड़ी, छोटी सी बात, मिली, खूबसूरत, Ûुमराह, ,क ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं।ख्1, उन्होंने विलेन की भी भूमिका की। देव आनंद की ज्वैल थीफ में उन्होंने विलेन की भूमिका की थी।


स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई ‘किस्मत’ फिल्म से बनी। पर्दे पर सिÛरेट का धुँआ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फिल्म के जरि, ,ंटी हीरो के पा= को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लि, बेहद फायदेमंद साबित हुआ और इस फिल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बना,। उसी दशक में उनकी ,क और फिल्म महल आई, जिसमें मधुबाला थीं। रोमांचक फिल्म महल को भी बेहद कामयाबी मिली। बाद के दिनों में जब हिन्दी सिनेमा में दिलीप, देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोÛों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फिल्में कामयाब होती रहीं। अपने दौर की अन्य अभिने=ियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने मीना कुमारी के साथ भी कई फिल्मों में अभिनय किया जिनमें पाकीजा, बहू बेÛम, ,क ही रास्ता, बंदिश, आरती आदि शामिल हैं। अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फिल्म के बिना अधूरी ही रहेÛी। इस फिल्म में उन्होंने ,कदम न, तरह के पा= को निभाया। इस फिल्म में उनका Ûाया Ûीत रेलÛाड़ी रेलÛाड़ी-- काफी लोकप्रिय हुआ था।



अशोक कुमार को फिल्मी सफर में कई पुरस्कारों से नवाजा Ûया और करीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित किया।

1959 संÛीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया Ûया।
1962 राखी फिल्म के लि, उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
1967 अफसाना फिल्म के लि, सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
1969 आशीर्वाद फिल्म के लि, उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
1969 आशीर्वाद फिल्म के लि, उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लि, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था।
1988 दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया Ûया।
1994 स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया Ûया।
1995 फिल्मफेयर लाइफटाइम ,चीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया Ûया।
1999 पद्म भूष.ा से सम्मानित किया Ûया।
2001 उत्तर प्रदेश सरकार }ारा अवध सम्मान दिया Ûया।
2007 स्टार स्क्रीन की तरफ से “विशेष पुरस्कार” पुरस्कार से सम्मान दिया Ûया।