एक सनातन राष्ट्र - भारत - Dwarpal Sikar

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14 जुलाई 2020

एक सनातन राष्ट्र - भारत






‘भारत’ का नामकरण शब्द की व्युत्पत्ति ‘विश्व का भरण पोषण करने में समर्थ देश’ होने से हुआ है। प्राचीन काल में इण्डोनेशिया से पश्चिम में ईरान  तक के भू-भाग में अतीत में एक साझी संस्कृति पर आधारित हिन्दू जीवन पद्धति प्रचलित रही है। कनिष्क के काल में ‘त्रिविष्टप‘ अर्थात तिब्बत व सिंकियांग  सहित वर्तमान भारत से अफगानिस्तान व मध्य एशियाई देशों तक यह भाग एक भू-राजनैतिक इकाई रहा है। चोल राज राजेन्द्र के काल में 1000 वर्ष पूर्व उनका राज्य सम्पूर्ण श्रीलंका व दक्षिण पूर्व एशिया तक रहा है इण्डोनेशिया में जावा व कम्बोडिया से लेकर अफगानिस्तान पर्यन्त इस सम्पूर्ण भू-भाग में आज  भी अनगिनत भव्य प्राचीन मन्दिर अथवा उनके अवशेष प्रचुरता में हैं।
इस प्रकार इण्डोनेशिया से सम्पूर्ण वर्तमान भारत वर्ष सहित ईरान तक की इस एक प्राचीन भू-सांस्कृतिक समानता वाली इकाई के अनेक विभाजनों के बाद भी वर्तमान शेष भारत में भी विश्व की सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि (18 करोड़ हैक्टैर) व  आज देश में वर्षाकाल में बिना उपयोग के 20 करोड़ हैक्टैर मीटर की जो जल राशि बहकर चली जाती है, उसका उपयोग करके देश में 16 करोड़ हैक्टैर  भूमि की सिंचाई की जा सकती है। इस प्रकार सिंचाई साधनों के उचित विकास से देश के सम्पूर्ण कृषि योग्य भूमि का सिंचित क्षेत्रफल लगभग 6 करोड़  हैक्टैर है। अतएव सघन कृषि के माध्यम से आज भी भारत विश्व की दो तिहाई जनसंख्या की खाद्य आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम होने से भारत नाम  को सार्थक करता है।
प्राचीन काल में जब हिमालय का उद्भव भी नहीं हुआ था, गंगा नदी की उत्पत्ति नहीं हुयी थी, सम्पूर्ण भू-मण्डल आज की भांति अलग-अलग  महाद्वीपों मंे विभक्त नही हुआ था उस काल की भौगोलिक रचना के विवरणों से युक्त ऋग्वेद को विश्व के सभी विद्वान एक मत से विश्व की प्राचीनतम  पुस्तक मानते हैं। उसे संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक आयोग (यूनेस्को) ने भी विश्व की अति प्राचीन विरासत की श्रेणी में रखा है। विश्व के प्राचीनतम  ज्ञान के उद्गम वेदों सहित प्राचीन हिन्दू वांग्मय में आज जिस उन्नत ज्ञान, विज्ञान व प्रौद्योगिकी के प्रसंग आते हैं, उससे प्राचीन काल में एक अत्यन्त उन्नत व सुसंस्कृत जीवन के असंख्य सूत्रबद्ध प्रमाण मिलते हैं। इस प्रकार वेदों में राष्ट्र की संकल्पना का विवेचन और पुराणों में भारत की भौगोलिक व्यापकता का  स्पष्ट वर्णन यह सिद्ध करता है कि भारत अति प्राचीन ही नहीं, एक अनादि सनातन राष्ट्र है। इसका स्पष्टीकरण आगे किया जा रहा है। सर्वप्रथम यदि  ‘हिन्दू‘, शब्द की ही व्याख्या करें तो यह सार्वभौम जन-जीवन में श्रेष्ठता के सूत्रपात का जीवन दर्शन है। हिन्दू शब्द की विवेचना भी कई प्रकार से की जा  सकती है।

हिन्दू राष्ट्रª की अवधारणा

भारतवर्ष या भारत भूमि में जन-जीवन की श्रेष्ठता के इन सुसूत्रों की अनादिकाल से प्रतिष्ठा होने से यह आर्य भूमि, आर्य (श्रेष्ठता पूर्ण) राष्ट्र या  हिन्दू राष्ट्र कहलाता रहा है। हिन्दू राष्ट्र व इसका विस्तार सरलतम शब्दों में ‘हिन्दू राष्ट्र‘ से आशय ‘‘हिन्दुओं या हिन्दू पूर्वजों की सन्तति का देश‘‘। हिन्दू से आशय ‘‘हिन्दू जीवन पद्धति से जीने वाले लोग’’  या ‘‘हिन्दू जीवन पद्धति से जीने वाले लोगो की सन्तति‘‘। भौगोलिक दृष्टि से ‘‘हिमालय से लेकर इन्दु सरोवर‘‘ अर्थात हिन्द महासागर के बीच स्थित  भू-भाग हिन्दू राष्ट्र कहलाता है। यह भौगोलिक सीमा-संज्ञक अर्थ, हिन्द महासागर के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित भू-भाग को अभिव्यक्त  करता है। इन अर्थों से हिमालय के दक्षिण का पूर्व दिशा में इण्डोनेशिया से लेकर सम्पूर्ण भारत सहित, पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान तक का सम्पूर्ण  क्षेत्र हिन्दू राष्ट्र कहा जाता रहा है जिसका दक्षिण चरम श्रीलंका तक है।
आगम शास्त्रों के अनुसार ‘हिन्दू’ शब्द का अन्य अर्थ भी है। यथा हीन विचारों से दूर  रहने वाला व हीन विचारों से समाज की रक्षा करने वाले को हिन्दू कहा जाता रहा है।

यथा - हीनश्च दूष्यत्येव हिन्दुरिति उच्येते।

हिमालय के दक्षिण में सुदूर पूर्व पर दृष्टि डालें तो, वस्तुतः पन्द्रहवीं शताब्दी में जिहादी आक्रमणों के पूर्व इण्डोनेशिया से ले कर सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व  एशिया, सनातन हिन्दू जीवन पद्धति का ही अनुयायी रहा है। यह पूरा भाग पौराणिक व बौद्ध उपासना मतों के अनुयायियों का ही क्षेत्र रहा है। वहाँ के ‘श्री  विजय’, ‘शैलेन्द्र’, ‘मजपहित’ आदि प्राचीन साम्राज्यों का गौरवमय काल, वहाँ की प्राचीन भाषाओं में संस्कृत की प्रधानता और सूर्य, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण व  दुर्गा आदि हिन्दू देवताओं की उपासना की सुदीर्घ काल से चली आ रही परम्परा और जेहादी आक्रमणों के बाद भी बचे वहाँ के विशाल प्राचीन हिन्दू मन्दिर,  आज भी उस क्षेत्र का, हिन्दू पूर्वजों की सन्तानों से आवासित होने के द्योतक हैं।
सुमात्रा से न्यू गिनी तक और आज के इण्डोनशिया से मलेशिया, सिंगापुर,  बुनेई, थाइलैण्ड (स्याम देश) पूर्वी टिमोर, फिलीपिन पर्यन्त सम्पूर्ण क्षेत्र में 1293 ईस्वी से मजपहित सम्राज्य रहा है। प्राचीन जबानी भाषा, यहाँ की बोली और  आध्यात्मिक पूूजा विधानों में संस्कृत एक मात्र भाषा थी। इसी प्रकार पश्चिम में ईरान तक यह हिन्दू राष्ट्रª था, जहाँ पारसी लोग ही रहते थे और 633-651 के बीच हुये कई जिहादी आक्रमणों के बाद ही  वहाँ की जनता ने इस्लामी मतान्तरण स्वीकार किया था। पारसियों के उपासना ग्रन्थ ‘जिन्दवेस्ता‘ में इन्द्र, वरूण, यम, विष्णु आदि देवताओं की आराधना के  विधान हैं।
वहाँ के अंतिम सासानी साम्राज्य का विस्तार इराक तक था। इस प्रकार पूर्व में, दक्षिण पूर्व एशिया से, मध्य में बांग्लादेश, अफगानिस्तान व  पाकिस्तान सहित सम्पूर्ण भारत और पश्चिम में, ईरान व ईराक तक का क्षेत्र, अरबों के आक्रमण के पूर्व वैदिक पौराणिक बौद्ध व पारसी उपासना मतों के  अनुयायों और हिन्दू पूर्वजों से युक्त था एतदर्थ यह विशाल भू-भाग, हिन्दू पूर्वजों की सन्तति से ही आवासित है।  विष्णु पुराण के अनुसार श्रीलंका सहित समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण का सारा भू-भाग जिसमें भारत की सन्तति निवास करती है, वह  देश भारतवर्ष है -
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तत् भारतं नाम भारती यत्र संततिः।।
(विष्णु पुराण) लगभग उसी समय में लिखे गये वायुपुराण में, भारत देश के विस्तार तथा लम्बाई-चैड़ाई का भी स्पष्ट उल्लेख है। इसके अनुसार गंगा के स्त्रोत  से कन्याकुमारी तक इस देश की लम्बाई एक हजार योजन है -

योजनानां सहस्त्रं द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरम्।
तायतो हि कुमारिक्याद् गंगा प्रभवाच्च यः।।

भू-सांस्कृतिक ईकाई के रूप में: यदि हिन्दू संस्कृति के प्राचीनकाल के प्रसार क्षेत्र की दृष्टि से विचार करें तो हिन्द महासागर के उत्तर में व  हिमालय के दक्षिण में स्थित सम्पूर्ण भू-भाग में हिन्दू संस्कृति प्रभावी रही है जो पूर्व दिशा में इण्डोनशिया से लेकर पश्चिम में ईरान व इराक तक  फैले मेसापोटामिया तक रहा है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में, 1400 वर्ष पूर्व इस्लाम के उदय के पूर्व हिन्दू जीवन पद्धति का अनुसरण करने वाले जन समूह  ही रहते रहे हैं। आज भी इन सभी क्षेत्रो में प्राचीन हिन्दू मन्दिरों के अवशेष व शिलालेख प्रचुरता में फैले हुये हैं। यदि, ईरान व ईराक पर अरबों के  आक्रमण पिछली सहस्त्राब्दी में ही हो गये थे, उन्हंे एक बार इस दृष्टि से भी छोड़ दंे कि उस क्षेत्र में सांस्कतिक व पान्थिक मतान्तरण एक हजार  वर्ष पूर्व हो चूका था और वहाँ अब हिन्दू तीर्थों व सांस्कृतिक अवशेषों का पूर्व स्वरूप उस प्रचुरता व सघनता में उपलब्ध नहीं है, तब भी इण्डोनशिया  से अफगानिस्तान तक आज भी अनगिनत हिन्दू तीर्थ भारत के बाहर के देशों यथा इण्डोनशिया, कोरिया, थाईलैण्ड, मलेशिया, म्यांमार, बांग्लादेश,  नेपाल, तिब्बत, चीन, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में अपने मूल स्वरूप में हैं।
इनका संक्षिप्त विवेचन इस पुस्तक के परिशिष्ट में किया गया है।  अफगानिस्तान में विश्व की विशालतम 2300 वर्ष प्राचीन भगवान बुद्ध प्रतिमाओं को तालिबान ने गैर इस्लामिक कह कर डायनामाइट से तोड़ दिया  था। पुस्तक के अन्त में परिशिष्ट दो में इसका विवरण देखें। समान ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: सम्पूर्ण भारतवर्ष के लोगों का इतिहास साझा है। इस क्षेत्र में ईसाई व मुस्लिम मतान्तरण आरम्भ होने के पूर्व का  इतिहास, मतान्तरण के विरुद्ध एक समान संघर्ष, संघर्ष के काल के सुख- दुःख व आक्रमणों के प्रारम्भिक प्रतिकार की अनुभूतियाँ भी साझी हैं। इन क्षेत्रों में ईसाई व ईस्लामी मतान्तरण का उस काल में यहाँ के सभी लोगों ने एक-एक कर सब ने आगे - पीछे प्रतिकार किया है। सबके पूर्वजों  का पंथ सनातन हिन्दू जीवन पद्धति पर ही आधारित रहा है। ईसाई मतान्तरण भी, गोआ आदि कुछ क्षेत्रों में तो जेहाद संदृश प्रयोग बल पूर्वक भी  हुआ है और अन्य कुछ क्षेत्रों में प्रलोभन या कूूट रचित सेवा कार्याें की आड़ में भी किया गया है।
गुणवाचक अर्थ: गुणवाचकता के आधार पर हिन्दू कौन व हिन्दू जीवन पद्धति क्या है। इसका विवेचन भी आवश्यक है। गुण चिन्तन के आधार पर ‘‘हीन विचारों से द्वेष रखने व ऐसे हीन विचारों से मानवता की रक्षा में सन्नद्ध रहने वाला हिन्दू कहलाता है।’’

यथा हीनश्च दूष्यत्यैव  हिन्दुरितिउच्येते।

स्वयं हीन विचारों से दूर रहना व मानवता के विरूद्ध हीनता के प्रदर्शन व अन्याय का डटकर विरोध भी करना और ऐसी दुष्टताओ का घ्वंस।  सनातन हिन्दू मत के अनुसार जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरों के साथ नही करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।

श्रुयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवत्र्यताम्। 
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेशां न समाचरेत्।।

अर्थ धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण हमें दूसरो के साथ नही करना चाहिये। हिन्दू धर्म, संस्कृत वांग्मय के अनुसार सनातन धर्म मत विश्व के सभी पंथो में सबसे पुराना व शाश्वत धर्म मत है। यह वेदों, पुराणों, नीति, ग्रन्थों पर  आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर विविध उपासना पद्धतियों, मत - सम्प्रदायांे और दर्शन को सम्मिलित कर लेता है। इसमें विविध देवी - देवताओं की पूजा  अनुमति है। मूलतः यह ऐकेश्वरवादी धर्म है जिसमें कहा गया है कि ‘एको सत् बहुधा वदन्ति सदविप्राः अर्थात ईश्वर एक है, जिसे विद्वान लोग अलग - अलग  प्रकार से समझाते आये हैं। इस धर्म मत को सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हंै। इंडोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम ‘‘हिन्दु आगम‘‘ रहा है।  हिन्दू केवल एक धर्म या संप्रदाय ही नही है अपितु जीवन जीने की एक अत्यन्त लोचशील या समन्वयवादी पद्धति है इसका एक लक्षण हिंसा का निषेध भी है  ‘‘ंिहंसायाम दूयते या सा हिन्दू‘‘ अर्थात जो अपने मन वचन कर्म से हिंसा से दूर रहे और समाज को हिंसाधारियों से बचायें वह हिन्दू है। जो कर्म अपने हितों  साधने के लिए दूसरों को कष्ट दे वह भी हिंसा कही गयी है। भारत में प्रचलित सभी पंथों यथा सिख पंथ, जैन पंथ, बौद्ध पंथ, कबीरपंथ, दादू पंथ, शेैव मत,  शाक्त मत, वैष्णव मत आदि सभी इन समान सिद्धान्तों पर आधारित हैं।

सम्पूर्ण भूमण्डल एक हिन्दू राष्ट्र


अतीत में सम्पूर्ण भूमण्डल पर यहीं श्रेष्ठ विचारों पर आधारित हिन्दू जीवन पद्धति से जीने वाला समाज रहा है। इण्डोनेशिया से अमेरिका तक इस समान जीवन पद्धति के अनेक उद्धरण व प्रमाण रहे हैं। सम्पूर्ण यूरोप में सूर्य के उपासक रहे हैं। सूर्य अर्थात मित्र के वर्णन एवं पुरावशेष आज भी सम्पूर्ण यूरोप में फैले हैं। यूरोपीय पुराविशेषज्ञों एडम्स व फीथियन की पुस्तक डपजतंपेउ पद म्नतवचम में इसका समुचित विवेचन है। सम्पूर्ण भू-मण्डल के एक राष्ट्रª होने के वेद वाक्य अर्थात पृथ्वी से समुद्र पर्यन्त एक राष्ट्रª व उसमें भिन्न-भिन्न शासन प्रणालियों से युक्त राज्य: समस्त भू-मण्डल पर एक समेकित संस्कृति की दृष्टि से ईरान से भी परे यूरोप के लगभग सभी प्राचीन पुरातात्विक उत्खननों मे सूर्य देवता के अवशेषों की प्राप्ति, अमेरिका महाद्वीप के सूर्य मन्दिर, सिन्धुघाटी सभ्यता की लिपि व चित्रित पशुओं आदि के तत्सम लिपियों व जीवों का लेटिन अमेरिका तक में होने जैसे अनेक प्रमाण, विश्व भर में एक साझी संस्कृति से युक्त एकात्म राष्ट्रª की वैदिक उक्ति

‘‘पृथिव्याये समुद्र पर्यन्ताया एक राडिति’’

अर्थात ‘पृथ्वी से समुद्र पर्यन्त यह भूमण्डल एक राष्ट्रª को चरितार्थ करती है। राष्ट्रª की यह अवधारणा राज्यों की भौगोलिक या भू-राजनैतिक सीमाओं से परे रही है। समान धर्म मर्यादाओं अर्थात् शाश्वत कत्र्तव्यपथ को निर्देशित करने वाले एकात्म संस्कृति से युक्त राष्ट्रª के अन्तर्गत विविध शासन प्रणालियों के अनुगामी राज्यों से आवेष्ठित होने पर भी, यह समग्र भू-मण्डल अति प्राचीन काल से एक एकात्म राष्ट्रª के रूप में देखा जाता रहा है, यथा

ऊँ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं
राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं संमतपर्यायी स्यात्सार्वभौमः
सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यताया एकराडिति।।
तदप्येशः श्लोकोऽभिगीतो। मरूतः परिवेष्टारो मरूŸास्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वे देवाः सभासद इति।।


उक्त मन्त्र में एक सार्वभौम राष्ट्रª के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न भू-राजनैतिक क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न शासन प्रणालियों से युक्त राज्यों के सन्दर्भ हैं। इन राज्यों का संक्षिप्त परिचय देना भी यहाँ समीचीन होगा।