- आंकडे झुंठ के तन्तु है, ये रोग के रोगियों की तरह है।
- ये किसी भी पक्ष का समर्थन कर सकते हैं।
- दो विपरीत पक्षों के ओर की बातों को प्रमाणित कर सकते हैं।
- समंक कुछ भी सिद्ध कर सकते हैं।
- समंक जो तथ्य स्पष्ट करते है वह सामान्य हो सकते है परन्तु जो तथ्य छिपाते हैं वह महत्वपूर्ण हो सकते है।
- समंक तथ्यों की परिभाषा को परिवर्तित कर सकते हैं।
- समंक तथ्यों को अस्पष्ट बना सकते हैं।
- कपटी, बेईमान, स्वार्थी व्यक्तियों द्वारा भ्रम में डालने एवं उद्देश्य से भटकाने के लिए समंको का उपयोग किया जा सकता है।
- अज्ञानी प्रयोगकर्ता द्वारा समंको की अनुपयुक्त तुलना कर समंको की विशेषताओं की उपेक्षा की जा सकती है।
समंक संरचना
समंक सांख्यिकी के आधारभूत तत्व हैं। ये विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं। समंकों को निम्न आधार पर वर्गीकृत किया गया गया हैं।
स्त्रोंतों के आधार पर समंक
स्त्रोंतो के आधार पर समंको को दो भागों में बांटा गया हैं।
- प्राथमिक समंक:- ऐसे समंक जो अनुसंधानकर्ता द्वारा नये सिरे से प्रारम्भ से अन्त तक एकत्रित किये जाते हैं। प्राथमिक समंक कहलाते हैं। इसमें अनुसंधानकर्ता मौलिक आधार पर समंक संग्रहित करता है। जैसे राजस्थान में गरीबी रेखा से निचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की संख्या ज्ञात करने हेतु प्रत्येक परिवार से व्यक्तिगत तौर पर सम्पर्क कर समंक एकत्रित करना प्राथमिक समंक कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में वे समंक जो किसी सांख्यिकीय अनुसंधान के लिए किसी अनुसंधानकर्ता या किसी एजेन्सी, संगठन/संस्था द्वारा मौलिक रूप से प्रथम बार एकत्रित किये जाते हैं, प्राथमिक समंक कहलाते हैं। इसमें समंक संकलन योजना मौलिक होती है।
- द्वितीयक समंक:- ऐसे समंक जो पहले ही अन्य संस्थाओं द्वारा एकत्र किये जा चुके हो व प्रकाशित हो चुके हों, अनुसंधानकर्ता मौलिक रूप से उन समंकों को एकत्रित नहीं करता है। ऐसे समंक द्वितीयक समंक कहलाते हैं। उदाहरण के रूप में यदि अनुसंधानकर्ता सरकार द्वारा एकत्रित एवं प्रकाशित कृषि अनुसंधान के समंको का उपयोग अपने अनुसंधान हेतु करता है। तो ऐसे समंक द्वितीयक समंक कहलाते हैं। इसमें अनुसंधानकर्ता मौलिक रूप से समंक संकलन नहीं करता है।
प्राथमिक एवं द्वितीयक समंको में अन्तर -
- एक समंक यदि एक व्यक्ति के लिए प्राथमिक है तो वही समंक दूसरे व्यक्ति के लिए द्वितीयक है। अतः आंकडे वहीं है परन्तु किसी अन्य अनुसंधानकर्ता द्वारा जब उन्हीं आकडों को द्वितीय बार उपयोग किया जाता है तो वे समंक द्वितीयक समंक कहलाते हैं।
- प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों में निम्न लिखित अन्तर होते हैं।
- समंक संग्रहण के आधार पर - प्राथमिक समंक स्वयं अनुसंधानकर्ता द्वारा एकत्रित किये जाते हैं जबकि द्वितीयक समंक समंक पहले से एकत्रित होते हैं जिनका प्रकाशन किया जा चुका होता है।
- उद्देश्य के आधार पर - प्राथमिक समंक अपने उद्देय के अनुकुल एकत्रित किये जाते है जबकि द्वितीयक समंक अनुसंधानकर्ता के लिए सहायक/साधन के रूप में होते हैं। जिनमें उद्देश्य अनुसार संशोधन की आवश्यकता होती है।
- समय, श्रम एवं व्यय के आधार पर - प्राथमिक समंको के संग्रहण में समय, श्रम एवं व्यय की आवश्यकता अधिक होती है क्योंकि वे नये सीरे से एकत्रित किये जाने होते हैं। जबकि द्वितीयक समंको में समय, श्रम व धन की बचत होती हैं।
- निष्कर्ष के आधार पर - प्राथमिक समंको से प्राप्त निष्कर्ष विश्वसनीय एवं वास्तविक होते हैं। जबकि द्वितीयक समंको से प्राप्त निष्कर्ष भ्रामक भी हो सकते हैं।
तथ्यों की विशेषता के आधार पर समंक
तथ्यों की विशेषताओं के आधार पर समंको दो प्रकार के होते हैं।
संख्यात्मक समंक:- ऐसे तथ्य जिनका प्रत्यक्ष (सीधा) रूप से मापा/नाप किया जा सकता है। जैसे आयु, आय, वजन, उत्पाद, लम्बाई आदि। संख्यात्मक समंक दो प्रकार के होते हैं।
- सतत् समंक:- ऐसे समंक जिनमें बारम्बारता नहीं टुटती और निश्चित सीमाओं के मध्य इनका कोई भी मूल्य/अंक हो सकता है - जैसे किसी कक्षा में विद्यार्थियों की आयु के समंक ज्ञात करने पर आयु 8 वर्ष, 8 वर्ष 3 माह, 8 वर्ष 6 माह हो सकती है व किसी कक्षा के विद्यार्थियों की लम्बाई 5 ईंच, 5.2 ईंच 5.8 इंच हो सकती है।
- खण्डित समंक:- ऐसे समंक जिनके मुल्य/अंक निश्चित तथा खण्डित होते है और इनमें विस्तार नहीं होता एवं एक मुल्य से दूसरे मुल्य में सुनिश्चित अन्तर होता है। उदाहरण के रूप में किसी परिवार में बच्चों की संख्या 1 या 2 हो सकती है परन्तु 1.4 या 1.7 नहीं हो सकती।
गुणात्मक समंक:- ऐसे समंक जिनका माप नहीं किया जा सके। जिनकी गणना मात्र उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर की जा सकती हो ऐसे समंक गुणात्मक समंक कहलाते हैं। उदाहरण के रूप में साक्षरता एवं निरक्षरता, रोजगार एवं बेरोजगार आदि गुणों के आधार पर प्राप्त समंक गुणात्मक समंक कहलाते हैं। इन समंकों में गुणों उपस्थिति के उपस्थित होने अथवा अनुपस्थित रहने के आधार पर गणना की जाती है। गुणात्मक समंक भी दो प्रकार के होते हैं।
- सामान्य या निर्दिष्ट समंक:- जब गुणात्मक समंको को किसी निश्चित आधार पर वर्गीकृत कर लिया जाता है और एक मद किसी निश्चित वर्ग में शामिल हो जाती है तब उनका योग कर समंक ज्ञात करते हैं। जिसे सामान्य या निर्दिष्ट समंक कहते हैं। जैसे महिला वर्ग का योग, पुरूष वर्ग का योग
- क्रमबद्ध समंक:- जब गुणात्मक समंकों को क्रम बद्ध कर लिया जाता है तो उन्हें क्रम बद्ध समंक कहते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी साक्षात्कार में 15 व्यक्ति शामिल होते हैं। इसके बाद साक्षात्कार के आधार पर रैंकिंग कर क्रमबद्ध करना।
समय के आधार पर समंक
- कालश्रेणी समंक:- ऐसे समंक जो समय के निश्चित अन्तराल पर एकत्रित किये जाते हैं। जैसे रोजगार, सकल उत्पादन आदि समंको की गणना वार्षिक, अर्द्धवार्षिक, त्रैमासिक, मासिक आधार पर की जाती है।
- परिक्षेत्र समंक:- ऐसे समंक जो समय के एक निश्चित बिन्दु पर एक या अधिक चरों के सम्बन्ध में एकत्रित किये जाते हैं। परिक्षेत्र समंक कहलाते है। उदाहरण के तौर पर जब किसी मिडिया चैनल द्वारा मतदान के सम्बन्ध में सर्वेक्षण किया जाता है।
चरों के आधार पर समंक
- एकचरीय समंक:- किसी एक चर की विशेषताओं के सम्बन्ध में समंक संकलन करना। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों के प्राप्तांक, लम्बाई, वजन आदि एक चरीय समंक है।
- द्विचरीय समंक:- किसी निश्चित समय में दो चरों से सम्बन्धित समंक द्विचरीय समंक कहलाते है। जैसे यदि 5 व्यक्तियों की लम्बाई तथा वजन से सम्बन्धित समंक दिये गये हो और उनके बीच के सम्बन्धों का अध्ययन करना हो।
- बहुचरीय समंक:- तीन या तीन से अधिक चरों से सम्बन्धित समंकों को बहुचरीय समंक कहते हैं।