पिता का एक अहसास... - Dwarpal Sikar

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08 जुलाई 2020

पिता का एक अहसास...


हम सभी जीवन में मौजूद प्रत्येक चीज का ज्ञान लेना चाहते है। प्रत्येक वस्तु का अर्थ एवं परिभाषा का ज्ञान करना चाहते है, उसके महत्व, गुण, दोष और विशेषताओं को जानना चाहते है। भारतीय संस्कृति के प्रभाव से कुछ तत्वों को केवल भावनाओं से जोडा जा सकता हैं। जैसे प्रेम भाव, दुःख भाव, खुशी भाव। पिता हमारे जीवन का एक अभिन्न महान व्यक्ति है। वह हमारे सपनों को पूरा करने के लिए अपने सपनो भुला देता है।

पिता वो छत्र होता है जिसके साये में बचपन से ले कर जवानी के बेपरवाह दिन बड़े मौज से बिना किसी खौफ और सिकन के गुजरा करते थे। पिता की एक बात हो तो बताऊं कि उन पर इस बात के लिये गर्व कर सकते हैं और बाकी बातों के लिये नहीं। असल मे अगर आप संतान की दृष्टि से देखें तो मालूम होगा कि एक पिता अपनी संतान के लिये क्या कुछ नही सहन करता।

कविता संग्रह -


(1)

ईश्वर का वरदान पिताजी, घर घर का सम्मान पिताजी
दादी मां के बूढ़े होटों की मीठी मुस्कान पिताजी।
अक्सर सामर्थ्यों से ज्यादा, रखते सब का मान पिताजी।
जाने कैसे कब क्या होना, रखते इसका ध्यान पिताजी।
पिता बन चुके बच्चों की भी, जग में हैं पहचान पिताजी।
बच्चों के हित अपनी इच्छाएं करते हैं कुर्बान पिताजी।
ऊपर से कठोर अंदर से हैं मीठी सी तान पिताजी

 

(2)


ओ पिता
तुम गीत हो घर के
और अनगिनत काम दफ्तर के।

छांव में हम रह सकं यूं हो
धूप में तुम रोज जलते हो
तुम हमें विष्वास देने को
दूर, कितनी दूर चलते हो

ओ पिता
तुम दीप हो घर के
और सूरज-चांद अंबर के

तुम हमारे सब अभावों की
पूर्तियां करते रहे हंसकर
मुक्ति देते ही रहे हमको
स्वयं दुख के जाल में फंसकर

(3)


पूजे जाते है शिव सदा और पीते रहे हैं विष पिता, मूल फैलाता है बरगद, बूढ़े होते हैं पिता
चूने वाली दीवारों पर काई से जमते पिता, बढ़ती जाती हैं जमीनें घटते जाते हैं पिता
बढ़ रहा है शोर घर में चेहरे पढ़ते हैं पिता, आजकल कुछ और भी सहमें से रहते हैं पिता
सर्दी में लहजे की ठंडक झेल लेते हैं पिता, भीतर एक खोल में दुबके रहते हैं पिता
छोट, मंझले, बड़े के हो गए ढेरों पिता, नन्हें-नन्हें टुकड़ों में बंटते गए पूरे पिता
अनुभवों की सीढ़ी पर ऊँचे बहुत बैठे पिता, पुराने चश्मे से दुनिया जांचते हैं नयी,पिता
बोनसाई के लिए घर से उखाड़े गए पिता, तुलसी चैरे,से पनपते हैं कहीं भी अब पिता
जायदादी कागजों में स्याही के धब्बे पिता, पेंशन की लाइनों में हैं अभी जीवित पिता
गंदुमी धोती में ढूंढें है शपा कबसे पिता, रेशमी अचकन में फोटो में मढ़े रक्खे पिता


 

(4)

 

पिता उम्मीद है, आस है,
वह परिवार की हिम्मत और विश्वास है।।
पिता बाहर से सख्त अंदर से नर्म है।
दिल में दबे हुए मर्म है, पिता खसम खास।

पिता संघर्ष के तुफान में हौसले की दीवार है।
परेशानियों से लडने वाला लोह औजार है।।
बचपन में खुश करने वाला खिलोना है।
नींद लगे पेट पर सुलाने वाला बिछौना है।

(5)


नहीं, तुम ईश्वर नहीं, हाँ पिता! तुम ईश्वर नहीं
तुम मेरे हो सिर्फ मेरे।

मेरे ही तो हो, मैं कृति हूं तुम्हारी
और तुम रचनाकार, मेरे तभी तो पिता!

तुम समाए हो अंतर्मन में मेरे और, झलकते हो सर्वांग अस्तित्व से मेरे
दुनिया तुम्हारी सीमित बस मुझ तक। तुम हो पिता बस मेरे।

कोई और भागीदार नहीं, तभी तो पिता!
तुम ईश्वर नहीं, क्योंकि साकार हो तुम निराकार नहीं।