"अनजान...
ताई वहां नहीं थी.....हमारे पडोस मे रहनेवाले दो बुजुर्ग दंपति...
मैंने चैन की सांस ली जब कभी मुझे बाहर निकलते देखती है उन्हें कुछ ना कुछ बाजार से मंगाना ही होता है...
कभी सब्जी, कभी दवा तो कभी दूध....
मे उनसे तंग आ गया हूँ जी तो चाहता है कभी सुना दूं कि खुद के बेटे को बाहर भेज दिया और मुझे नौकर समझ रखा है क्या...
पर अकेली रहती है अंकल भी शायद बीमार रहते है इसलिए चुप हो जाता हूँ ये सोचकर...
अपनी बाइक मैं अब घर से दूर ले जाकर स्टार्ट करता हूँ कि कहीं आवाज सुन कर आ ना जाएं... बाइक लेकर अभी मोहल्ले की मोड़ से मुड़ने ही वाला था कि ताई दिख गई हाथों में बड़ा सा झोला लिए पैदल....पसीने से तर बतर... जाने क्या हुआ मुझे, मैंने बाइक रोक दी
"नमस्ते ताई... पैदल..क्यूँ.. रिक्शा नहीं था क्या...
" सांस तेज चल रही थी उनकी...अपने पल्लू से पसीने को पोछ थोड़ा रुक कर
"नमस्ते अनिल बेटा...वो रिक्शे वाले.....ज्यादा पैसे मांग रहे थे झोले को किसी तरह जबर्दस्ती वे फिर चलने को हुई उन्हें इस हाल में देख मैं पसीज गया
"लाइये ताई मैं ले चलता हूँ...
उन्होंने कुछ देर देखा मुझे फिर कुछ सोचने लगीं
"चलिए ना ताई क्या सोचने लग गई' उन्होंने कुछ बोला नही...
मैंने खुद उनके हाथों का सामान लिया और उन्हें पीछे बिठाकर उनके घर ले आया...
अंकल फ़ोन पर बातें कर रहे थे।
"बेटा....मैं भी बहुत बीमार रहता हूँ, तेरी माँ भी थक चुकी है अभी बाजार गई है फिर मेरी दवा लाने मेन मार्केट जाएगी....
मोहल्ले के बच्चे कितना करेंगे हमारे लिए....
वो भी बचने लगे हैं हमसे...
अंकल की ये बात सुन मैं कहीं ना कहीं खुद से नज़रें चुराने लग गया था अंकल हाथ में दवा की पर्ची लिए फ़ोन पर बातें किये जा रहे थे
"हमें अपने साथ ही रखता तो..... ना जाने उधर से क्या बोला गया। अंकल फ़ोन रख रोने से लग गएं ताई उनको चुप कराते हुए
"आप क्यूँ उससे रोज रोज ये विनती करते है....
मैं हूँ ना......जबतक सांस है मैं खींच लुंगी अपनी गृहस्थी....
ताई ने उनके हाथ से दवा की पर्ची ले ली
उनकी ये परिस्थिति देख दिल में दर्द सा उठ आया
"तुम जाओ अनिल बेटा... तुम्हें देर हो रही होगी" ताई ने भरी हुई आवाज में मुझे जाने को कहा। उन्हें देख मेरी आँखें भी भर आईं
"मुझे माफ़ कर दीजिये ताई...
मैं पड़ोस में रहकर आपकी इन परिस्थितियों से अनजान था आप मुझे पर्ची दीजिये मैं दवा लेकर आता हूँ
"जब खुद का बेटा सब जानकर ही अनजान बना बैठा है तो तुम क्यूँ माफ़ी मांग रहे हो अनिल....
"क्यूंकी आप मुझे भी तो बेटा कहती हैं ताई"
मैंने अपने इस हक़ से उनके हाथों से पर्ची ले ली ....उन्होंने भी मेरे माथे को चूम अपना हक़ जता दिया..
छोटा पापा
वो तीनों खूब शॉपिंग-वॉपिंग करके घर लौटे।
पत्नी अनु ने ताला खोला, समान रखा और रसोई में पानी लेने चली गई।
थक कर चूर सोफे पर निढ़ाल सी पड़ी बड़ी बहन अपना पर्स खोलकर पैसे देती हुई भाई से बोली, "ये ले।"
"ये क्या दीदी?"
" मेरी साड़ी के पैसे हैं, तूने दुकान में मेरी और अनु की साड़ी का बिल इकठ्ठा पे कर दिया था ना।
वही वाले।"
"तो? अब मैं तुमसे इसके पैसे लूँगा।
भूल गईं क्या कितना किया तुमने मेरे लिये।
पापा से छिपाकर कॉलेज के साथ-साथ और दूसरे कोर्स की भी फीस दे जातीं थीं।
माँ नहीं थी हमारी पर तुम तो मेरे लिये माँ भी बन गईं।
तुम ना होतीं तो आज मैं इतना कामयाब ना होता।
और तुम मुझे.....।"
" चुप कर, छोटा है मुझसे छोटा ही रहेगा।
चल रख ये।"
"अच्छा ये बताओ दीदी, पापा जब कुछ दिलाते थे तो क्या तुम उन्हें भी पैसे देतीं थीं?"
"अरे! उन्हें क्यूँ देती भला?
पापा को भी कोई पैसे देता है क्या?
" बिल्कुल सही कहा, तो ये समझ लो की आज से मैं तुम्हारा छोटा पापा हूँ।
अब कोई बहस नहीं होगी।"
बहन दीवार पर लगी तस्वीर की ओर देख कर हँसते हुए बोली, " देख रहें हैं पापा, चेहरा आवाज़ बिल्कुल आप की तरह और अब डपट भी आप ही की तरह रहा है, ये मेरा छोटा पापा।"
पत्नी अनु ने ताला खोला, समान रखा और रसोई में पानी लेने चली गई।
थक कर चूर सोफे पर निढ़ाल सी पड़ी बड़ी बहन अपना पर्स खोलकर पैसे देती हुई भाई से बोली, "ये ले।"
"ये क्या दीदी?"
" मेरी साड़ी के पैसे हैं, तूने दुकान में मेरी और अनु की साड़ी का बिल इकठ्ठा पे कर दिया था ना।
वही वाले।"
"तो? अब मैं तुमसे इसके पैसे लूँगा।
भूल गईं क्या कितना किया तुमने मेरे लिये।
पापा से छिपाकर कॉलेज के साथ-साथ और दूसरे कोर्स की भी फीस दे जातीं थीं।
माँ नहीं थी हमारी पर तुम तो मेरे लिये माँ भी बन गईं।
तुम ना होतीं तो आज मैं इतना कामयाब ना होता।
और तुम मुझे.....।"
" चुप कर, छोटा है मुझसे छोटा ही रहेगा।
चल रख ये।"
"अच्छा ये बताओ दीदी, पापा जब कुछ दिलाते थे तो क्या तुम उन्हें भी पैसे देतीं थीं?"
"अरे! उन्हें क्यूँ देती भला?
पापा को भी कोई पैसे देता है क्या?
" बिल्कुल सही कहा, तो ये समझ लो की आज से मैं तुम्हारा छोटा पापा हूँ।
अब कोई बहस नहीं होगी।"
बहन दीवार पर लगी तस्वीर की ओर देख कर हँसते हुए बोली, " देख रहें हैं पापा, चेहरा आवाज़ बिल्कुल आप की तरह और अब डपट भी आप ही की तरह रहा है, ये मेरा छोटा पापा।"